संस्थापक के बारे में
Chairman
1. Prrsaar Group of Companies
2. National Thoughts.
3. Shree Devaly Sangh
4. Daadi Maa Rukmani Devi Foundation
5. Nepal Bharat World Development Forum
Author
Book- Gaagar mein Saagar
A book with unlimited knowledge in limited words on Basics of life & Finance
Habits:
Fond of Reading & writing
• Started Reading Shrimad Bhagwad Geeta at the age of 6.
• Read all the books of his school library (more than 1000) by the age of 11 .
• Has read more than 20,000 books till now.
• Has been given The Best Rating of The world in Dermatoglyphic multiple Intelligence Test Report for Inborn intelligence.
• Has been most successful throughout his Banking service of 24 yrs. Passed his CFP exam at the age of 56 as a regular Student.
• Has been known for Turn Around innovation & out of Box Bold decisions.
His trade mark: - Direction is more important than speed
Motto:- You must grow - India Must grow
Mission:- Socio Economic Development
Vision:- A world /A Nation where all Live together in peace & happiness.
शक्तिशाली कैसे बनें :
शक्तिशाली बनने के लिए केवल दो ही उपाय हैं
1. आत्मबल 2. संगठन
आत्मबल कैसे बढ़ सकता है :
संस्कारवान बनने से आत्मबल बढ़ता है ।
संगठित कैसे हों
उत्तम संस्कृति से समाज संगठित होता है
संस्कार का अर्थ :- व्यक्तिगत उचित व्यवहार
संस्कृति का अर्थ :- सामाजिक उचित व्यवहार
श्री देवालय संघ के बारे में
जहां न भय हो – न भूख हो – न भेदभाव हो – सभी सुखी हों सभी समृद्ध हों
ऐसे समाज के निर्माण के लिए ही श्री देवालय संघ की स्थापना डॉ. वेद प्रकाश गुप्ता जी के द्वारा परमपिता परमात्मा ने अपनी असीम कृपा से करवाई है।
1. भारत विश्वगुरु
भारत सोने की चिड़िया
फिर भारत गुलाम क्यों रहा?
2. श्रीराम - भगवान
श्रीकृष्ण - भगवान
फिर उन्हें हथियार क्यों उठाने पड़े?
3. क्या राक्षसी वृत्ति को समाप्त किए बिना सभी सुखी रह सकते है?
4. सभी धर्म प्रेम करना सिखाते हैं
फिर अपने आपको धर्म गुरु बनाकर आपस में क्यों लड़वाते हैं?
5. क्या वृध्दाश्रम किसी समाज के लिए शोभा की बात है?
6. क्या संस्कार व संस्कृति एक अंधविश्वास है या किसी भी व्यक्ति व समाज की प्रगति के लिए,सुखी जीवन के लिए अतिआवश्यक है? क्या आने वाली हमारी पीढ़ियां बिना संस्कार व संस्कृति के सुखी रह सकती हैं?
7. क्या “जय हो मात-पिता की” एक बीज मंत्र है जिसमें समाज की शक्ति-समृद्धि का वटवृक्ष छुपा हुआ है?
श्री देवालय संघ का अर्थ
श्री :- कल्याण का - समृद्धि का सूचक
देवालय :- देवताओं का स्थान
देवता :- जो सबका भला सोचता हो
जो सबका भला करता हो
ऐसे व्यक्ति का हृदय ही सच्चा देवालय है
ऐसे व्यक्तियों का संगठन ही श्री देवालय संघ है।
मानवता के कल्याण के लिए बनाए गए नियम ही धर्म है “संपूर्ण मानवता का कल्याण” ।
किसी व्यक्ति विशेष, समूह विशेष, स्थान विशेष के कल्याण की बात धर्म हो ही नहीं सकती।
वह किसी का भी केवल मत हो सकता है, धर्म नहीं।
हर समय पर – हर स्थान पर, मानवता कल्याण के लिए, संपूर्ण सृष्टि के कल्याण के लिए,
आपके व आपके परिवार के कल्याण के लिए श्री देवालय संघ निम्नलिखित
तीन संकल्पों को अपनाने का निवेदन करता है
1. हम माता पिता की सेवा करेंगे, बहन-बेटी का सम्मान करेंगे, पति-पत्नि व्रत का पालन करेंगे।
2.हम किसी से भी जात-पात, ऊँच-नीच, धर्म के नाम पर भेदभाव नहीं करेंगे ।
3.हम शक्तिशाली बनेंगे – राक्षसी वृति को समाप्त करेंगे।
राक्षसी वृत्ति क्या है ?
जो कहे, जो मैं कहूं वह मानना पड़ेगा (धर्म-अधर्म से कोई लेना-देना नहीं) केवल मैं जो कहूं वह मानना पड़ेगा, वरना सताऊँगा मार दूंगा ।
जैसे कि श्री ईसा मसीह जी को मारा गया- सताया गया
श्री सुकरात जी को मारा गया – सताया गया
श्री शाह हुसैन जी को मारा गया – सताया गया
श्री गुरू अर्जन देव जी को मारा गया – सताया गया
श्री गैलिलियो जी को मारा गया – सताया गया
श्री गुरुतेग बहादुर जी को मारा गया – सताया गया
श्री देवालय संघ का उद्देश्य
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः ।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःख भाग्भवेत् ।।
भावार्थ :- सभी खुशरहें सभी स्वस्थ रहें ।
सबका भला हो और किसी को कुछ भी दुःख न हो ।
2.
ॐ सह नाववतु । सह नौ भुनक्तु ।सह वीर्यं करवावहै ।
तेजस्विनावधीतमस्तु मा विद्विषावहै ।।
भावार्थ :- हे परमपिता परमात्मा, आपकी कृपा से हम सब मिलकर रहें,
मिलकर दुनिया के सुख को भोगें, एक दूसरे को आगे बढ़ाने में सहायता करें,
हमारी योग्यता संसार में प्रकाशमान हो,
हम आपस में कभी भी विरोध ना करें, मिलकर रहें।
जाति या वर्ण कर्म से है- जन्म से नहीं
- ब्राह्मण :- जो मार्गदर्शन करके जीविका कमाता हो।
- क्षत्रिय :- जो राज्य संबंधी कार्य करके जीविका कमाता हो ।
- वैश्य :- जो किसी प्रकार की सेवा या वस्तु बेच कर जीविका कमाता हो ।
- शूद्र :-जो भीख मांग कर या लूट कर जीविका कमाता हो ।
भीख और दान में अंतर है :-
दान :- उत्तम वस्तु का – उत्तम व्यक्ति को – उत्तम कर्म के लिए दिया जाता है।
भीख :- कोई भूख के कारण न मरे – चोरी आदि गलत कार्य न करे – इसलिए पात्र – कुपात्र का ध्यान किये बिना दी जाती है।